विधवा इस शब्द का सरल भाषा में मतलब है अगर कोई विवाहित महिला का पति मर जाता है तो उस महिला को समाज में विधवा कहा जाता हैं| जब कोई महिला विधवा हो जाती है तो अक्सर समाज के लोग उस महिला को अशुभ मानते हैं| उसको अकेला छोड़ दिया जाता है, यहाँ तक कि उसके लिए सोने का कमरा, भोजन कपड़े आदि भी अलग कर दिए जाते हैं, जो कहीं न कहीं बहुत ही गलत हैं| जब कोई महिला विधवा हो जाती है, तो उसके मृत पति की धन दौलत पर कहीं तो अधिकार दे दिया जाता और कहीं पर नहीं दिया जाता हैं | समाज का हर कोई उसे अशुभ निगाहों से देखता हैं |
विधवा महिलाओं को दरअसल अकेले ही जीवन गुजारने को मजबूर किया जाता हैं | अगर उसके बच्चे हैं तो उनको भी विधवा महिला की तरह ही देखा जाता हैं, जो कहीं से भी उचित नहीं हैं| यही नहीं विधवा महिलाओं को दूसरी शादी भी नहीं करने दी जाती | जबकि दूसरी तरफ अगर किसी व्यक्ति की पत्नी मर जाती है तो उसको लोग दूसरी शादी करने के लिए समाज के ही लोग प्रोत्साहित करते हैं| ये कैसी विडम्बना हैं एक पुरुष को उसकी पत्नी के मर जाने पर उस विधुर पुरुष को घर परिवार संभालने के लिए शादी करने लिए सिर्फ अनुमति ही नहीं डी जाती बल्कि उसको बार-बार दूसरी शादी के लिए उकसाया जाता हैं, जबकि एक विधुर महिला को ये सब करने की अनुमति नहीं हैं| इसलिए यह स्पष्ट है कि विधवा महिलाओं के साथ सामाजिक भेदभाव हो रहा है|
समय-समय पर लोगों ने धार्मिक सभाओं में आमजन ओर सन्त महात्माओं ने इनका जिक्र भी किया पर कोई भी सकारात्मक पहलू नजर् नहीं आया | इस दिशा में एक बड़े समाज सुधारक ईश्वर चंद विद्यासागर (1820–1891) हैं, जिनके अथक प्रयासों से सन 1856 में गवर्नर जनरल डलहौज़ी के द्वारा विधवा महिला पुनः विवाह कानून लागू करवाया था। यह कानून तो बन गया था और आज भी लागू हैं लेकिन इस कानून की अभी तक लोगों को जागरूकता बिल्कुल भी नहीं हैं और न ही कोई इस बारे में खुलकर कोई बात करता है | जबकि हमारे देश में बहुत ही बड़े -बड़े लोग धार्मिक मतों का अनुकरण करने वाले हैं| दरअसल यह विधवा विवाह आजकल से नहीं बल्कि सती प्रथा के बंद होने से भी पहले से ही है| सती प्रथा तो सिर्फ एक विशेष समाज तक ही सीमित थी, जबकि विधवा विवाह सभी समाजों के लिए एक चुनौती के रूप मे था और हर कोई इस पर बात भी नहीं करना चाहता था, भले ही वह विधवा लकड़ी का पिता ही क्यों ना हो| लेकिन इंसानियत कभी खत्म नहीं हुई चाहे युग कोई भी रहा हो|
पुराने समय में एक प्रथा जरूर थी कि जब कोई बहू विधवा बन जाती और उसकी दूसरी जगह शादी की जाती थी तो उसको “नाता” प्रथा बोलते थे | इसमे दरअसल ऐसा होता था कि अगर घर मे बड़े भाई है ओर उनका आकस्मिक निधन हो जाता है तो उसकी पत्नी उसके छोटे भाई के साथ चली जाती थी ताकि वो अपना जीवनयापन खुशी से कर सकें | जब वो विधवा लड़की या महिला उसके देवर (पत्नी के पति का छोटा भाई) के साथ जाती तो इसमे उसकी पहले की तरह शादी नहीं होती ओर न ही बरात का आना जाना होता, इसमे बस परिवार और रिश्तेदार ही आपस मे मिलकर इस “नाता” प्रथा को पूरी करते | कुछ ऐसा भी था कि अगर किसी की पत्नी मर गई हो तो उस विधुर पुरुष के साथ शादी कर दी जाती पर ये बहुत कम ही होता था क्योंकि विधुर पुरुष को सामाजिक लोग भी नई शादी के लिए ही प्रोत्साहित करते थे| यह भी देखा जाता था कि लकड़ी को अपनी मर्जी से अपनी पसन्द के लड़के या पुरुष को चुनाव करने की आजादी नहीं थी, सब कुछ परिवार के लोग ही फैसला लेते| जबकि अगर कोई पुरुष विधुर हो जाता तो परिवार, रिश्तेदार और समाज के लोग मिलकर उसकी शादी करवाते| ऐसे मे विधवाओं की स्थिति काफी दयनीय रही, क्योंकि जब तक किसी को अपने मनपसंद का पति न मिले तो सब कुछ इतना अच्छा नहीं चलता।
समय के आधुनिकता के चलते लोगों को कानून का पता भी चला और कुछ संस्थायें जैसे आर्य समाज विधवा विवाह करवाने मे आगे आया लेकिन ये समाज से परे होने कारण यानि अलग धार्मिक रीति रिवाज के कारण अधिक लाभदायक नहीं रहा| इसी कड़ी में एक संगठन डेरा सच्चा सौदा 1948 से लगातार इस विधवा विवाह उन्मूलन मे सच्ची मानवता की भावना से लगा हुआ हैं | इस संस्थान ने यह बीड़ा उठाया कि अगर कोई महिला कम उम्र मे विधवा हो जाती है और अगर वो विधवा महिला चाहती है कि उसकी दूसरी शादी हो तो ये डेरा संगठन के लोग उस विधवा महिला की शादी करवाते हैं| यह डेरा सच्चा सौदा संगठन जब भी विधवा महिला की शादी करवाता है, इसमें दोनों तरफ के लड़का और लड़की की ही सिर्फ सहमति नहीं होती बल्कि दोनों पक्षों के परिवारों की भी सलाह से विधवा विवाह सम्पन्न करवाया जाता हैं| इतना ही नहीं अगर विधवा लड़की के साथ बच्चें भी हैं तो उनको भी स्वीकारा जाता हैं| इसका मुख्य कारण है कि इस संस्थान में सभी धर्मों के साथ-साथ सभी वर्णों ओर सभी समाज के लोगों आतें हैं| इस संगठन के तीन गुरु रहें हैं वर्तमान में बाबा राम रहीम इसके प्रमुख हैं| अब उन्हीं की देख रेख मे ये विधवा विवाह सम्पन्न कराए जातें है| इसके साथ ही विधवा विवाह के समय कुछ धन राशि भी दी जाती हैं| हमें लगता हैं सभी को एक जुट होकर प्रयास करना चाहिए ताकि कोई विधवा महिला आर्थिक और मानसिक रूप से परेशान न रहें| इसके लिए डेरा सच्चा सौदा जैसी संगठन के साथ भी हमें कंधे से कंधा मिलाकर लगातार आगे बढ़ाना चाहिए| ताकि हर कोई चैन की सांस ले सकें और अपना जीवन सफल बना सकें|
आधुनिकता को ध्यान मे रखते हुए लड़कियों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि वो खुद अपने आप को अबला नहीं सबला नारी बन सकें और अपने फैसले खुद ले सकें| क्योंकि एक पढ़ी लिखी लड़की दो घरों मे रोशनी प्रदान कर सकती हैं| एक अपने भाई बहिन को अपने माँ पिता के यहाँ पढ़ा लिखा सकती हैं, दूसरा शादी के बाद दूसरे घर में अपने बच्चों ओर अन्य को शिक्षत कर सकती हैं| आजकल विधवा महिलाओं के सुरक्षा कानून भी बने हैं और रोजगार की योजनाएं भी हैं लेकिन अगर पढ़ी लिखी होगी तो ही इन सब सुविधाओं का लाभ उठा पाएगी| इस तरह ही हम महिलाओं सम्मान दिला सकते है और वो खुशी से एक परिवारिक जिन्दगी जी सकें ओर जीवन पतझड़ ओर वीरान न हो कर सदाबहार बना रहें|
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